क्या सच में प्याज पर चढ़ी काली परत ब्लैक फंगस हैं ? जानिए पूरा सच | अफवाहों से दूर रहिए | Black Fungus from Onion ?

सोशल मीडिया पे ब्लैक फंसग को लेकर तरह तरह की अफवहा फ़ैल रही हैं | इसलिए सराकर और डॉक्टर ऐसी अफवाहों से बचने के लिए कहे रहे हैं, और समय-समय पे लोगों को उचित जानकारी दे रहीं हैं |  ऐसी अफवाहों के सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है, जिसके चलते बड़ी तेजी से ये अफवहा फ़ैल रही की प्याज पर कढ़ी काली परत ब्लैक फंगस हैं, जो की सरासर गलत हैं | 




देश में एक तो कोरोना का केहर चल ही रहा हैं वही दूसरी और फर्जी ख़बरों की सुनामी आये दिन होती रहती हैं जिसके चलते लोगों में असंतुष्ट उत्पन होता हैं और वह भयभीत होने लगते हैं | ऐसी ख़बरें न केवल समाज के लिए हानिकारक हैं बल्कि पुरे समाज में असंतुष्टि का वतावरण उत्पन्न करती हैं , इसी कारण सराकर लोगों को ऐसी ख़बरों से सावधान रहने के लिए बोलती हैं | 



क्या हैं सच में प्याज की काली परत ब्लैक फंगस हैं ? Black Fungus

सबसे बड़ी बात तो यही हैं की फंगस कला होता ही नहीं हैं , ओर बता दें कि फ्रीज के अंदर जो काली काई जमी होती है या प्याज पर जो काली परत चढ़ी होती है, वह ब्लैक फंगस यानी mucormycosis से पूरी तरह अलग है,  इसका ब्लैक फंगस से दूर दूर तक कोई नाता ही नहीं होता | एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया कि दरअसल, ब्लैक फंगस का नाम ही गलत है क्योंकि ब्लैक फंगस काला नहीं होता. उन्होंने बताया कि ब्लैक फंगस की वजह से स्किन में ब्लड सप्लाई रूक जाती है जिससे स्किन पर काला धब्बा पड़ने लगता है. शायद यही वजह है कि ब्लैक फंगस या फंफूद नाम पड़ गया है. ब्लैक फंगस का नाम mucormycosis है. 


ब्लैक फंगस से बचाव के उपाए क्या हैं ? Black Fungus


एम्स निदेशक का कहना है कि ब्लैक फंगस से बचने के लिये धूल वाली जगह पर मास्क पहनकर जाये। मिट्टी, काई के पास जाते समय जूते, ग्लब्स, फुल टीशर्ट और ट्राउजर पहने। डायबिटीज पर कंट्रोल, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग या स्टेरॉयड का कम से कम इस्तेमाल कर इससे बचा जा सकता है। एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवा का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही करना चाहिए। स्टेरॉयड का उपयोग दस दिनों से अधिक नहीं किया जाना चाहिए। स्टेरॉयड का उपयोग होम आइसोलेशन के बाद नहीं करें।

कैसे होगा इसका उपचार?

विशेषयज्ञों के मुताबिक़ ब्लैक फंगस फंगल एटियोलॉजी का पता लगाने के लिये केओएच टेस्ट और माइक्रोस्कोपी की मदद लेने से घबराएं नहीं। तुंरत इलाज शुरू होने पर रोग से निजात मिल जाती है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।



मौजूदा वक्त में बीमारी से निपटने के लिये सुरक्षित सिस्टम नहीं है। सतर्कता ही बचाव का एकमात्र उपाय है। बीमारी से मस्तिष्क, फेफड़े और त्वचा पर इसका असर देखने को मिला है।

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